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विनोद कुमार शुक्ल ऐसे बिम्ब और प्रतीक रचते हैं कि पाठक को गद्य में भी कविता का रस मिलता है। ‘तीसरा दोस्त’ एक छोटी कहानी है जिसमें एक एहसास पूरे जीवन की तरह समाया हुआ है। दो दोस्तों का गहरापन, उनका एक दूसरे में अभिन्न रूप से शामिल होना एक चमत्कार की तरह घटता है। अतनु राय के चित्र हमेशा की तरह इसमें एहसास का गाढ़ापन भरते हैं।
ऐसी कितनी ही कविताएं और गीत हैं जो बचपन में खेल का अनिवार्य हिस्सा रही हैं। टके थे दस भी उन्हीं में से एक है। लेकिन इसमें लोकगीत की खुशबू है। उलटी गिनती में चलने वाला ये गीत अपने हर अंक में एक मस्ती समेटे हुए है। इसमें लोक जीवन की हंसी ठिठोली है और रोज़मर्रा के जीवंत चित्र हैं। सेठ जी का पात्र हमें उन सब चरित्रों से मिलवाता है जो कहीं छुपे रहते हैँ और दृश्य बनकर आते हैं।
जैसा की नाम में ही निहित है, ये एक चोर की चौदह रातों का ताना-बाना है। हर रात की एक कहानी है और हर कहानी जीवन और दुनिया के कड़वे सच से रूबरू करवाती है। ये कहानियां पाठक को सोचने पर मजबूर करती हैं कि आखिर चोर, साधू-संत, भला या बुरा- क्या ये सब वर्गीकरण सचमुच इंसान के चरित्र और कर्म पर आधारित हैं या समाज द्वारा गढ़ा गया भ्रम। किशोरों के लिए ये कहानियां एक अनमोल खज़ाना हैं।